Endangering lives of Haryana sportspersons via the commercial route

जिला सोनीपत के गोहाना नगर में आज २६ अवस्त २०१२ के दिन हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी भूपिंदर सिंह हुडा ने सरकारी इंतजाम के तहत एक अभिनन्दन सभा का आयोजन करवाकर उन खिलाड़ियों को अति महंगी कारें उपहार में दीं जिन्हें वे या तो पहले की तरह बेच देंगे अथवा कुछ दिन चलाकर, डिब्बा बनाकर इधर-उधर कर देंगे. वास्तव में अपेक्षा से अधिक और लेने वाले की औकात से ज्यादा धन-राशि एवं उपहार देकर हम अपने खिलाड़िओं के सम्मान के नाम पर राजकोष से सार्वजानिक धन का अपव्यय कर रहे हैं. मज़ा तो तब था जब खुद करोड़पति मुख्यमंत्री महोदय अपनी जेब से इतनी धनराशी और उपहार लुटाते और व्यक्तिगत कोष में से इसका इंतजाम करते. और, यह सब उनके अपने गाँव या शहर के घर पर होता. प्रसंगवश, यह आयोजन तहसील के भैंसवाल गाँव में होना था जहाँ से योगेश्वर पहलवान आते हैं. लेकिन विगत रोज़ बरसात होने से स्टेडियम में पानी खड़ा हो गया था, इसलिये स्थान परिवर्तन की योजना चार दिन पहले ही तय हो गयी थी. अपार धन-राशि देकर हम अपने खिलाड़िओं को गलत संदेश दे रहे हैं. इन्हें राज्याश्रय मिले इसमें किसी को ऐतराज़ नहीं होगा, लेकिन सार्वजानिक कोष से इन्हें व्यक्तिगत ईनाम के तौर पर धन प्रदान करना अनुचित ही नहीं बल्कि एक नैतिक अपराध भी मना जाना चाहिये. लेकिन आज के दौर में नैतिकता की बात सुनता ही कौन है ? राज्य की खेल नीति पर पहले भी मैनें सवाल उठाये थे कि इसके कार्यानवयन से खिलाड़ियों में व्यावसायिक भावना का उदय होगा और वे अमरीकी खिलाड़ियों के रास्ते पर चल निकलेंगे. लेकिन अफ़सोस, किसी ने ध्यान नहीं दिया.

इस बार ओलम्पिक में पदक जीत कर आने वाले और अन्य प्रतिभागियों के लिये जिस प्रकार से धन कि वर्षा हुयी है वह आश्चर्यजनक और चिंताजनक इसलिये है कि इसके दुष्परिणाम जल्दी ही हम सबके सामने आ जायेंगे. हमारे यहाँ स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स में न्यूरो-फिज़ियोलोजिस्ट और स्पोर्ट्स फिज़ियोलोजिस्ट की नियुक्ति नहीं होती. न ही प्रशिक्षण के दौरान खिलाड़ियों की शरीरक्रियाओं को दर्ज़ करके वैज्ञानिक रीति से उनका रिकार्ड रखने और उन पर शोध करने का कोई उपक्रम किया जाता है. केवल डोपिंग, अर्थात नशीली एवं बलवर्धक रासायनिक दवाओं के सेवन पर थोड़ी नज़र रखी जाती है. ऐसे में खिलाड़ी अपने शरीर को आवश्यकता से अधिक, खतरनाक स्तर तक स्ट्रेच करते हैं और या तो चोट खा कर कंडम हो जाते हैं या फिर उनकी मौत हो जाती है. ऐसी अनेक घटनाओं की रिपोर्टिंग स्पोर्ट्स-विज्ञान के जर्नलों में हो चुकी है. लेकिन खिलाड़ियों के वर्तमान स्वस्थ्य और भविष्य के दीर्घ जीवन की किसे परवाह है ? व्यक्तिगत अहम् की तुष्टि और राजनैतिक लोकप्रियता के चलते उक्त खतरों से अनजान खिलाड़ियों को बली का बकरा बनाया जा रहा है और हमारे वैज्ञानिक संस्थानों के वैज्ञानिक भी विवशतापूर्वक सब देख रहे हैं. लेकिन वे नौकरशाह वैज्ञानिक जो ठहरे. सरकारी डांट या सजा के डर से वे भी चुप रहना बेहतर समझने लगे हैं.

मैं जब छोटा था तो मैनें मेजर ध्यानचंद को झांसी में हाकी खेलते है देखा था. उनके हुनर को तब मैं क्या समझता ! लेकिन वे लालची नहीं थे और केवल हाकी खेल से प्यार करते थे. पूर्ण निष्ठावान थे इसके प्रति. मेरे पिताजी उन दिनों वहीं पर भारतीय बख्तरबंद डिविज़न-१ में तैनात थे. आजकल के खिलाड़ियों और नेताओं में सीधा सम्बन्ध हो गया है. पहले ऐसा नहीं था और खेल तथा खिलाड़ी के बीच धन का कोई रिश्ता नहीं होता था. मेरा विश्वास है कि हमारे प्रतिभावान खिलाड़ी राजनेताओं की इस चाल को समझ लेंगे कि नेताओं द्वारा सुझाये लालच के रास्ते पर चलकर वे स्वयं अपने राजनैतिक भविष्य के लिये सस्ती लोकप्रियता ही हासिल करना चाहते हैं, देश की नाक ऊंची करने और खेल में कौशल का इज़ाफा करने का उनका न तो कोई इरादा है न ही समझ.

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