1-Health Systems Research

भारत में 'हेल्थ सिस्टम्स रिसर्च' बहुत अधिक ध्यानाकर्षक और पसंदीदा विषय नहीं है. इस से पहले ऑपरेशनल या ढांचागत बुनावट में ही ये बाते कवर होती रहीं. लेकिन देखा गया कि कोरोना महामारी से उपजी समझ ने सरकारी तंत्र और हेल्थ सिस्टम्स पर फिर से एक क्रिटिकल नज़र डालने के लिए बाध्य किया है. अक्सर ऐसी बातें मीडिया में टिप्पणीकारों के जरिये ही प्रकट होती है या फिर सरकारी तंत्र की वेबसाइट्स पर नज़र आती हैं.
क्या भारत का हेल्थ केयर सिस्टम वाकई कमजोर है? मतलब ढांचागत रूप से कमजोर है या अगर ढांचा है तो वहाँ न्यूनतम सुविधाओं का अभाव पाया गया, डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ के अलावा टेक्निकल स्टाफ की कमी है. दवा नहीं है, सर्जरी के लिए सुविधा नहीं है. एम्बुलेंस है तो ड्राईवर नहीं या पेट्रोल नहीं. बिजली नहीं आती, पानी नहीं आता. सफाई नियमित और ठीक से नहीं होती. डॉक्टर्स या स्टाफ लेट आता है....आदि-आदि.
उपरोक्त के अलावा यह भी कि कनजुमेबल्स नहीं होते और इनके लिए आवश्यक फंड्स नहीं होते. बिल्डिंग भी टूटी-फूटी या नयी जरूरतों के मुताबिक़ नहीं है. यह भी कि स्वास्थ्य का अधिकतर उन्नत ढांचा शहर केन्द्रित है और कस्बों-गाँवों की तरफ ध्यान नहीं.
केंद्र सरकार में हेल्थ रिसर्च से तीन दशक तक मैं जुड़ा रहा सैंकड़ों मीटिंग्स अटेंड की और जो दस्तावेज़ देखे पढ़े, जो भी उन्नत रिसर्च होती वह हाथों-हाथ सुलभ होती. वह भी देखी-पढ़ी जाती. भारत के हेल्थ सिस्टम्स रिसर्च की जिन्हें अच्छी समझ नहीं या इसके क्रमिक विकास के ऐतिहासिक रूप से पर्याप्त जानकारी नहीं वे अक्सर ही इसके बारे राय जाहिर करते हुए, आकलन करते हुए और सरकार को अपनी तरफ से 'प्रभावी' सुझाव देते हुए निंदनीय भाषा में या रुष्ट होकर कुछ भी लिखते हैं संप्रेषित करते रहे हैं उसका अक्सर और वास्तव में ही कोई ख़ास प्रभाव नहीं होता. ये लोग अधिकतर जर्नलिस्ट, एम.बी.ए करके किसी उच्च प्राइवेट संस्थान या विदेश पोषित एन.जी.ओ के एग्जीक्यूटिव या किसी कॉर्पोरेट अस्पताल के उभरते हुए संचालक होते हैं.
ऐसे ही लोग ज्यादातर मौकों पर भारत में हेल्थ केयर को इंश्युरेंस सेक्टर में लाने के लिए और जीरो बिलिंग के लिए दबाव बनाते देखे गए हैं. ये लोग अपने को देश का सबसे बढ़िया हेल्थ मेनेजर मानने का भ्रम पाले रहते हैं. भारत की ज्योग्राफी, मौसम, सेनिटेशन की स्थिति, प्रदूषण का स्तर, पोषण स्तर, आमदनी, वैज्ञानिक चेतना और शिक्षा के स्तर को देखकर एक बार एक विख्यात वैज्ञानिक और शोध प्रबंधक ने मुझे कहा था कि अमरीका जैसे देशों ने हेल्थ को बीमा क्षेत्र के हवाले करके खुद को बर्बाद कर लिया है. यह बात सन १९९७-९८ के आसपास कही गयी थी जो अभी कोरोना वायरस के आघात के नज़रिए से अमरीका पर बिलकुल सटीक रूप से लागू हुयी. भारत का हेल्थ सिस्टम चाहे जैसा भी 'कमज़ोर' हो (जैसा कि हेल्थ का बिजनेस करने वाले चिल्लाते रहे हैं), कोरोना से युद्ध के दौरान दुनिया के उन्नत देशों के मुकाबले में (जिनके सिस्टम को वे मॉडल मानते हैं) बेहतरीन तरीके से प्रभावी पाया गया है. हमारे हेल्थ सिस्टम ने प्रशासनिक सिस्टम, फार्मास्युटिकल सिस्टम और पुलिस सिस्टम के साथ मिलकर बेहतरीन नतीजे दिए. कोरोना ने भारत को जो कुछ सिखाया है उसके चलते हमारा प्रशासनिक, वित्तीय और स्वास्थ्य का ढांचा आने वाले सालों में बेहतरीन रेस्पोंस देने के लिए और मजबूत बनाया जाएगा, ऐसा जाहिर हो गया है. कल २२ अप्रैल के The Hindustan Times के अंक में सम्पादकीय पन्ने पर प्रकाशित लेख 'India is poised for deep structural health reforms' by Parijat Ghosh and Vikram Chandrashekhar, Bain and Company उस श्रेणी के लोगों की दिमागी उपज है जिनका जिक्र मैंने अभी किया है. मैं सिर्फ इनकी सोच पर अफ़सोस जाहिर कर सकता हूँ.
आप जो धीरे-धीरे उम्र-भर सीख सकते हैं वह लेख लिखने से पहले दो-तीन
दिन की पढाई से नहीं कर सकते.

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