फील्ड मार्शल लार्ड बर्डवुड की सन १९५६ में प्रकाशित पुस्तक 'टू नेशन्ज़ एंड कश्मीर' देख रहा हूँ. यह काफी रोचक किताब है. इससे पहले सन १९५३ में उन्होनें 'ए कॉन्टिनेंट डिसायड्स' शीर्षक से किताब लिखी थी. लार्ड बर्डवुड ने अपने शुरुआती कैरियर में भारत में ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सेवारत रहे. कश्मीर में रुचि रखने वालों को मौलिक सामग्री से ओत-प्रोत इस पुस्तक से काम का मसाला मिल सकता है.
कश्मीर पर पाकिस्तान यह कह कर अपना हक़ जताता रहा है पाकिस्तान को एक अलग राष्ट्र मानकर इसे उत्तर-पश्चिम भारत से अलग इलाका देकर एक नया मुल्क बनाया गया तो कश्मीर उसके हिस्से में आना चाहिए था क्योंकि व न केवल मुस्लिम बहुत क्षेत्र रहा बल्कि इस पर लम्बे दौर तक सल्तनत काल से मुग़ल काल तक मुस्लिम शासकों का भी आधिपत्य रहा और महाराजा रणजीत सिंह के समय में इस पर आधिपत्य होना तो हाल की बात है जिसे अंग्रेजी राज के समय डोगरा शासकों ने कब्ज़ा लिया क्योंकि इधर का काम जरनल जोरावर सिंह देखते थे. लेकिन डोगरा शासनकाल में उन्होंनें किसी भी मायने में गिलगित-बाल्टिस्तान, जम्मू, कश्मीर और लद्दाख की डेमोग्राफी को नहीं बदला. इसीलिए एक अंग्रेज 'रेनेगेड' फौजी अफसर की रहनुमाई में पाकिस्तान मिलिशिया ने धोखे से और तेज़ी से घुसपैठ करके गिलगित, बाल्टिस्तान, मुज़फ्फरगढ़ तक का इलाका और कश्मीर घाटी का कुछ और संलग्न पहाड़ी इलाका अपने कब्ज़े में ले लिया. महाराजा हरिसिंह निर्णय नहीं कर पा रहे थे और कबायली हमलावर श्रीनगर तक पहुँचने वाले ही थे तब किसी तरह सरदार पटेल ने महाराजा हरिसिंह से इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन पर दस्तखत करवाए और पूरे प्रान्त का भारत संघ में विलय कर दिया. तभी त्वरित कारवाई के अंतर्गत कबायली हमलावरों को रोका गया. लेकिन तब तक बड़ा इलाका पाकिस्तान हमसे छीन चुका था. अब रहे-खहे कश्मीर पर भी वह पिछले तीस साल से लगातार आतंकियों के हमले करवाकर अपने इरादों को न छोड़ने का संकेत कर चुका है. वैसे मैं यह मानता हूँ कि जो इलाका उनके पास है वह हमारे इलाके से कुदरती तौर से अधिक सुन्दर है.
कश्मीर पर पाकिस्तान अपना हक़ मानता है लेकिन वह यह जताते हुए यह भूल जाता है कि हमारे पास राजतरंगिनी जैसा दस्तावेज़ भी है और पाकिस्तानी आला हुक्मरानों को यह भी याद नहीं रहता कि बारहवीं सदी से पहले कोई ललितादित्य भी हुए. महमूद गजनवी से लेकर सुल्तानों के समय तक कश्मीर को लगातार नेस्तनाबूद किया जाता रहा और वहाँ भारतीय सभ्यता और समाज के सभी मूर्त प्रतीकों को नष्ट करने की कवायद लम्बे समय तक चलती रही. मुगलों के आने के बाद ही जम्मू-कश्मीर का इलाका फिर से समृद्ध होने लगा.
इस सिलसिले में लार्ड बर्डवुड के नज़रिए को भी देख लेना चाहिए. लेकिन हम कश्मीर को कब्ज़े वाले इलाके को खाली करवाने का प्रयास इसलिए शुरू नहीं कर पाए कि हमारी सेना सक्षम नहीं बल्कि इसलिए कि इसके लिए जिस कठोर राजनैतिक इच्छा शक्ति की जरूरत होती है वह भारत के शीर्ष नेतृत्व ने कभी नहीं दिखाई. अर्जेंटीना से फाकलैंड्स द्वीप छुडाने के लिए मार्गरेट थैचर ने हुक्म दिया तो त्वरित करके ब्रिटिश नेवी ने उसे फिर से अपने कब्ज़े में ले लिया. दुनिया को कोई मुल्क ब्रिटेन के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोल पाया. मुझे लगता है कि भारत के नेताओं को अपनी क्षमता और देश की सेना के जरनलों पर भरोसा ही नहीं. यह सब पोलिटिकल इन्कम्पीटेंसी का मामला अधिक है नहीं तो पाकिस्तान की क्या बिसात कि इलाका खाली करवाने की कार्रवाई में वह अधिक दिनों तक टिक पाए. मुझे पूरा यकीन है कि चीन इस मामले में खुद को लिप्त नहीं करेगा.
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