दफ्तर में लेखन और टाइप रायटर के बिना बहुत सा काम नहीं होता। टाइप रायटर पर हरेक को सही-से टाइप करना नहीं आता। कार्यालय में काम करने वाले बहुत से लोग या अफसर इसे 'इनफीरियर' काम मानते हैं और सोचते हैं कि क्लर्क-टाइपिस्ट का होता है। लेकिन विदेशियों में मैंने यह भाव नहीं देखा। शुक्र है कि मैंने सान 1967 में ही इंग्लिश और हिन्दी (रेमिंग्टन की-बोर्ड) पर टाइप करना सीख लिया था जिसका अभ्यास रोजाना आज भी करता हूँ। देखा गया है कि कम्प्यूटर की-बोर्ड पर जो लोग काम करते हैं वे उस पद्धति को फॉलो नहीं करते जो कि की-बोर्ड पर काम करने के लिए सीखनी पड़ती है। यह दो महीना समय लगाकर अभ्यास से सीखी जा सकती है। इंग्लिश की-बोर्ड पर मेरे स्पीड अभी 45-50 और हिन्दी की-बोर्ड पर 35-40 शब्द प्रति मिनट होगी। मैकेनिकल टाइप-रायटर हमारे जीवन से करीब-करीब खत्म हो चुका है।
हिंदुस्तान में पहले के दिनों में टाइप-रायटर इम्पोर्ट हुआ करते थे। फिर रेमिंग्टन और गोदरेज ने इन्हें बॉम्बे में बनाना शुरू किया। इन कंपनियों का इतिहास इंटरनेट पर मौजूद है, यहाँ दोहराने की जरूरत नहीं है। मैंने घर पर काम करने के लिए एक पोर्टबल रेमिंग्टन टाइप रायटर सन 1986 में रु.5600 में दिल्ली के आसफ अली रोड से रेमिंग्टन कंपनी के शो-रूम और डीपो से डी जी एस एंड डी रेट कांट्रैक्ट पर लिया था। इस से मैंने बहुत काम किया और यह आज भी जस का तस एक यादगार के रूप में घर में मेरी स्टडी में रखा है जिस पर मेरा पौत्र कभी-कभी अपना शौक फरमाता है। वह मात्र साढ़े छह साल की उम्र का है।
टाइप राईटर्स ने हमारे काम की पद्धति को बहुत संवारा। हिन्दी और इंग्लिश के अलावा भारत में पंजाबी और उर्दू फॉन्ट की टाइप मशीनों के बारे मुझे मालूम है, लेकिन अन्य भाषाओं के बारे नहीं। लेकिन कंप्यूटर में तो अधिकतर भारतीय भाषाओं के फॉन्ट हाजिर हैं। चूंकि मुझे ठीक पद्धति से की-बोर्ड पर अंगुलियाँ चालानी आती हैं और मेरी अंगुलियाँ हरेक लेटर के स्थान को पहचानती हैं इसलिए में बिना की बोर्ड को देखे ही स्पीड से टाइप करने में सक्षम हूँ।
पाँच साल पहले मुंबई के एक फॉटोग्राफर चिरदीप चौधरी ने टाइप रायटर के बारे में एक कॉफी टेबल बुक का प्रकाशन किया था। मैंने यह किताब तो नहीं देखी लेकिन इस बारे 'मिंट' अखबार में 12 जून 2017 के अंक में छपी एक खबर जरूर देखी थी। किताब में टाइप रायटर के कल्चरल महत्व को रेखांकित किया गया और बहुत से चित्रों के साथ ऐसे चित्र भी प्रकाशित किए गए जिनमें कुछ व्यक्तियों को टाइप रायटर से कागज पर पोर्ट्रेट या किसी अन्य विषय के चित्र बनाने की प्रक्रिया को दिखाया गया।
टाइप-रायटर का स्ट्राइकर जब रबड़ के बेलन पर छड़े कागज़ को स्ट्राइक करता है तो इस से निकली खट-खट की ध्वनि एक खास रिदम पैदा करती है। किसी को यह सुहाती थे किसी को नहीं।
गोदरेज कंपनी ही एशिया मैं पहली कंपनी थी जिसने मैकेनिकल टाइप रायटर निर्माण के लिए बॉम्बे में सान 1955 में फ़ैक्टरी लगाई और सन 2009 में सिर्फ 55 साल चलाकर बंद कर दिया। गोदरेज आर्काइव्स में मुझे इनके टाइप राईटर्स के बारे कोई ऐतिहासिक लेख नहीं मिला, लेकिन हो सकता है संग्रहालय में कुछ हो।
टाइप राइटिंग से शॉर्ट-हैंड राइटिंग का अंतरंग संबंध रहा है। दफ्तरों में काम करने वाले इस बारे जानते हैं। आइजक पिटमैन की शॉर्टहैंड पद्धति विश्व में अधिक पोपुलर रही। पहले हर शहर में शॉर्टहैंड और टाईपिंग सिखाने वाले 'कॉलेज' हुआ करते थे। सन 1967-68 में ये लोग मात्र ढाई-तीन रुपया प्रति महीना की फीस लेकर टाइप करना सिखाते थे। आश्चर्य होता है! आज कैसा युग है? कंप्यूटर बेहतर हैं, मैं मानता हूँ, लेकिन मैकेनिकल टाइप रायटर पर सीखना एक आनंददायक अनुभव ही नहीं, स्किल को सीखने की उचित और वैज्ञानिक पद्धति है जिसे हमें इग्नोर कर दिया है। मेरे शहर में टाइप सिखाने के लिए अब सिर्फ एक ही 'कॉलेज' बचा है।
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