कर्ज़दार हरयाणा

वैसे तो पंजाब की हालत हरयाणा से भी बुरी है और हिमाचल और जम्मू एंड कश्मीर की भी कोई बढ़िया नहीं, लेकिन भा.ज.पा के शासन काल में राज्य की 'फिस्कल हेल्थ' का सत्यानाश हो गया है. कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल, भारत सरकार की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार राज्य पर कुल कर्जा १ लाख ३९ हज़ार करोड़ रुपयों का (२०१८-१९) का है. सन २०११ के जनगणना के अनुसार इसे कुल आबादी के प्रति व्यक्ति के हिसाब से देखें तो हरेक पर ५५ हज़ार रुपये का क़र्ज़ बैठता है. हरयाणा राज्य की निवल आय (नेट रेवेन्यू गेन्स) रु. १६३३ करोड़ मात्र है. सरकार ने मार्किट से जो लोन उठा रखा है इसे वापिस लौटाने के लिए ही अगले पञ्च साल में राज्य को प्रति वर्ष १२,९०६ करोड़ रुपयों की जरूरत होगी. जब कांग्रेस सरकार हटी तो हरयाना पर कुल क़र्ज़ ६०,२९३ करोड़ रु. का था. इन पांच सालों के करीब समय में पांच बार बजट पेश किया और वह भी मैनेजमेंट के माहिर माने जाने वाले उद्योगपति के पुत्र अभिमन्यु साहब ने ! जाहिर है हरयाणा में 
भौतिक विकास अर्थात निर्माण और इंफ्रास्ट्रक्चर पर जो रुपया खर्च हो रहा है उसके साथ नैतिक और आध्यात्मिक 'विकास' पर भी रुपया खर्च हो रहा है. कभी स्वर्ण जयंती, कभी गीता जयंती तो कभी एन.आर.आई कांफ्रेंस. शाह खर्च हरयाणा सरकार को क़र्ज़ की कोई ख़ास परवाह नहीं है. यह तो चलता ही रहता है. राज्यकार्य चलाने का खर्च भी बढ़ता जा रहा है. प्लान और नॉन-प्लान एक्स्पेंडीचर की फिगर्स देख लें और इससे भी नीचे टैक्स स्ट्रक्चर देख लें. कहीं भी तो राहत नज़र नहीं आती. शुक्र है की राज्य को नोट छापने का अधिकार नहीं है. तब तो मामला और भी खतरनाक हो सकता था. आम आदमी भला यह सब क्यों देखेगा. इसीलिए आम जन सुविधाओं को लेकर हमेशा ही राजनेता बन्दरबाँट थ्योरी पर काम करते रहे हैं. यहाँ तो उधार लेकर घी पीने वाला मामला मुझे अधिक सटीक लग रहा है. नेता लोग और वित्त मंत्री कभी न तो सार्जनिक रूप से, न ही मीडिया में और न ही विधान सभा में बजट पर डिटेल में बात करते. विपक्ष भी निकम्मे लोगों से भरा हुआ है.

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